Friday, May 3, 2024

Fir Aaungi Raja Tere Pas - फिर आऊँगी राजा तेरे पास

फिर आऊँगी राजा तेरे पास !

प्रेषक : संदीप कुमार


एक बार मैं अपने चाचाजी के यहाँ गाँव गया।


दोपहर में मैं घर पहुँचा तो सब खेत पर गए हुए थे। मेरे चाचा की लड़की पूनम वो बारहवीं में पढ़ रही थी, अकेली जामुन के पेड़ पर झूला झूल रही थी।


वो बोली- आओ, झूलोगे क्या मेरे साथ?


हमने एक तख्ता लगा लिया झूले में और दोनों एक दूसरे की टांगों में टांगें डाल कर झूलने लगे।


जब झूला ऊपर नीचे जाये तो दबाव के वजह से मेरे पैर उसकी चूत पर दबाव बनाते और उसके पैर मेरे लण्ड पर।


मेरा लण्ड खड़ा हो गया और वो जानबूझ कर मेरे लण्ड पर अपने पैर का दबाव बनाती। मैंने लुंगी पहनी हुई थी उसने सलवार पहनी हुई थी।


मेरा लण्ड खड़ा होकर लुंगी से बाहर अन्डरवीयर में उठा सा दिखने लगा। मैंने अपने पैर का अंगूठा उसकी चूत पर दबा दिया तो वो हंसने लगी।


मैंने सोचा- जानम तैयार है।


मुझे महसूस हुआ कि उसकी सलवार गीली हो गई थी।


मैंने कहा- पूनम एक तरफ ही से झूलते हैं !



तो वो मेरे टांगों के ऊपर बैठ गई। मेरा खड़ा लण्ड अब उसकी गाण्ड से टकरा रहा था। उसके बाल मेरे मुँह पर उड़ रहे थ। वो बार बार मेरे लण्ड पर अपने आपको आगे पीछे करती मानो उसे लण्ड की चुभन अच्छी लग रही हो।


मैंने धीरे से उसके स्तनों को दबाया तो उसने कुछ नहीं कहा। मैंने उसकी गर्दन पर चुम्मी ले डाली।


वो गर्म होने लगी थी।


मैंने उसके कुरते में अन्दर हाथ डाला और उसकी चूचियो तक ले गया तो वो झूले से उतर गई, वो बोली- भैया, बाथरूम जाकर आती हूँ अभी।


वो अन्दर घर में चली गई।


मैं धीरे धीरे उसके पीछे चला गया, उसे पता ही नहीं चला। उसने बाथरूम के दरवाजे को पूरा बन्द नहीं किया और पेशाब करने लगी।


मैं एक तरफ से झांक रहा था, सु सु सर की आवाज आ रही थी उसके मूतने से।


पेशाब करने के बाद उसने अपनी चूत में उंगली डाली और अन्दर-बाहर करने लगी। मैंने झट से दरवाजा खोल दिया।


वो घबरा गई और खड़ी हो गई सलवार पकड़ कर !


मैंने पूछा- पूनम यह क्या कर रही है?


बोली- थोड़ी खुजली हो रही थी।


मुझे भी पेशाब लग रहा था तो मैंने अपना खड़ा लण्ड पकड़ा और पेशाब करने लगा।


लण्ड खड़ा होने से पेशाब की धार बड़ी दूर पड़ी। पूनम एक तक देखती रही मेरे लण्ड को, फ़िर बोली- भैया, तुम क्यों आये यहाँ पर? मैं तुम्हारी छोटी बहन हूँ। मुझे शर्म आती है।


मैंने कहा- देख, तूने मेरा लण्ड देख लिया और मैंने तेरी चूत देख ली, फिर शर्म क्यों करती है?


मैंने उसे समझाया- देख अपनों के बीच बात का किसी को पता भी नहीं चलता और मजे भी हो जाते हैं। अब तू बच्ची तो है नहीं ! थोड़ा-बहुत तो जानती होगी? पूनम, मेरे भी खुजली हो रही है।


उसने कहा- तो भैया, मैं क्या करूँ?


मैंने कहा- तू मेरी खुजा दे, मैं तेरी खुजा देता हूँ।


बोली- अन्दर वाले कमरे में चलते हैं।


हम दोनों अन्दर वाले कमरे में चले आये।


गाँव की लड़कियाँ सेक्स के बारे में ज्यादा नहीं जानती। मैंने उसकी सलवार उतार दी और अपना अन्डरवीयर उतार दिया।


उसने न तो ब्रा पहनी थी न ही कच्छी ! काली झांट चूत पर थी पर थी बहुत ही छोटी।


मैं उसकी चूत को उंगली से सहलाने लगा, उसको अच्छा लगा, उसने मेरे लण्ड को पकड़ा और मेरे टट्टों को खुजाने लगी।


मैंने उसे समझाया- मेरे लण्ड की इस खाल को ऊपर-नीचे कर !


तो वो करने लगी लण्ड और मोटा होने लगा। मैं था शहर से और वो गाँव की छोरी जिसे कुछ पता ही नहीं था कि क्या हो रहा है और क्या होने वाला है, बस उसे मजा आ रहा था चूत में उंगली से। थोड़ी देर में मेरे लण्ड ने धार मार दी जो सीधी उसके मुँह पर गिरी।


वो चौंक गई, बोली- यह क्या है?


मैंने बताया- इसी से बच्चा बनता है।


लण्ड मुरझाने लगा तो बोली- यह तो ढीला होने लगा है?


मैंने बताया- तू हिलाती रह इसको और मुँह से चूस थोड़ा !


बोली- नहीं।


वो मना करने लगी तो मैंने जबरदस्ती से अपना लण्ड उसके मुँह में डाल दिया फिर उसे ठीक लगा और उसने मेरा वीर्य जो लण्ड पर लगा था चाटकर साफ कर दिया। फिर पूरा लण्ड मुँह में ले लिया बोली- जब यह ढीला था तो अच्छा नहीं लग रहा था, अब तो गर्म-गर्म लग रहा है।


मैंने कहा- पूनम, चल लेटकर करते हैं।


वो तैयार हो गई और बिस्तर पर लेट गई।


मैंने उसका कुरता उतरना चाहा तो वो बोली- नहीं, इसे मत उतारो।


मैंने सोचा, अब इसे कौन समझाए कि जो बचानी थी वो तो मेरे हाथ में दे दी।


फिर मैंने उसे मनाया और नंगा कर दिया और खुद भी नंगा हो गया और उसके ऊपर लेट गया और उसे चूमने लगा। उसकी चूची मुँह में लेकर बच्चो की तरह चूसने लगा तो उसने अपने हाथ मेरे सर पर रख लिए और बालों में उंगली फ़िराने लगी।


मेरा लण्ड कभी कभी चूत से टकरा जाता तो उसकी चूत से निकला पानी मुझे महसूस हो जाता।


फिर एक हाथ से मैंने अपने लण्ड को उसकी चूत पर रगड़ना शुरु कर दिया, उसे मजा आ रहा था।


मैंने पूछा- पूनम, खुजली कम हुई कुछ?


तो बोली- भैया, और बढ़ रही है ! अब तो अन्दर तक हो रही है !


मैंने कहा- अन्दर कहाँ तक?


तो बोली- इसके अन्दर तक !


उसने अपनी चूत पर हाथ लगा कर कहा।


मैंने कहा- यह जो मेरा लण्ड है, यह इसके अन्दर की खुजली मिटा सकता है।


पर उसे इतना पता था, बोली- इससे तो मैं माँ बन सकती हूँ। नहीं गड़बड़ हो जाएगी, तुम ऊपर-ऊपर ही कर लो बस।


मैंने उसकी चूत में अपनी जीभ घुसा दी और जबरदस्त तरीके से हिला दिया जीभ को और चूसने लगा।


फिर मैं घर में अन्दर तेल ढूंढने चला गया तो वहाँ मुझे कंडोम मिल गए जो चाचाजी इस्तेमाल करते होंगे चाची को चोदने में।


मैंने पूनम को कंडोम दिखाया और बताया- इसे लगाने से तू माँ नहीं बनेगी, अब डरने की कोई बात नहीं है। और यह देख, मैं तेल लगा कर डालूँगा अपना लण्ड तेरी चूत में ! पता भी नहीं चलेगा।


वो बोली- जो मर्जी कर लो ! बस मैं फंस न जाऊँ !


फिर मैंने उसकी चूत पर तेल लगाया और अपने लण्ड पर भी और उसकी टांगें चौड़ी करके लण्ड उसकी चूत में रख दिया और जोर लगाया तो वो मारे दर्द के चिल्लाने लगी, बोली- मुझे नहीं करना यह सब।


पर लण्ड जब चूत को चाट ले तो कहाँ रुकने वाला था। घर इतना बड़ा था और अन्दर का कमरा कि उसकी चीख बाहर तक नहीं जा सकती थी।


तो मैंने धक्के पे धका मारा पर बड़ी तंग चूत थी, साली गाँव की थी ना !


लण्ड आधा अंदर चला गया और दो धक्कों में पूरा अन्दर। बिस्तर पूरा खून से सन गया !


वो दर्द से तड़प रही थी और मैं धक्के पे धक्के मार रहा था।


थोड़ी देर में उसे भी मजा आने लगा, मैंने स्पीड बढ़ा दी। तभी मेरा वीर्य निकलने वाला हो गया। मैंने लण्ड निकालना चाहा पर निकाल नहीं पाया मजे के कारण !


और सारा माल उसकी चूत में ही डाल दिया और लेटा रहा उसके ऊपर।


वो बोली- भैया कुछ निकला है तुम्हारे लण्ड से गर्म-गर्म मेरी चूत में !


जब उठे तो वो खून देखकर घबरा गई, बोली- अब क्या होगा?


मैंने कहा- तू इसे ठिकाने लगा चादर को ! बाकी मुझ पर छोड़ दे।


उसने वो चादर कूड़े में दबा दी।


गाँव की छोरी थी तो शाम तक सब दर्द दूर।


जब सब घर आये तो मैंने चाची से कहा- पूनम को कुछ दिन के लिए शहर भेज दो मेरे साथ !


तो वे तैयार हो गए और अगली सुबह हम दोनों स्कूटर से शहर आ गए।


चार दिन बाद ही उसे माहवारी हो गई तो हमारी चिन्ता दूर हो गई।


अब वो मुझसे खुल चुकी थी हमारे घर में मेरा कमरा अलग था पढ़ने के लिए, वो भी साथ पढ़ती पाठ रोज नए नए सेक्स के।


साली न दिन देखे न रात ! जब भी मौका मिले- बस चोदो मुझे भैया।


आखिरी दिन जिस दिन उसे वापस गाँव आना था, रात को मेरे पास आई, बोली- भैया बहुत याद आयेगी तुम्हारी।


मैंने पूछा- मेरे लण्ड की या मेरी?


बोली- दोनों की ! दोनों बहुत प्यारे हो।


तो मैंने कहा- पूनम आज लण्ड का एक और मजा दिखा दूँ?


वो बोली- दिखाओ।


सब सो चुके थे, किसी को जरूरत ही नहीं यह जानने कि बहन-भाई क्या कर रहे हैं कमरे में !


सो मैंने उसे नंगा किया और खुद नंगा हो गया। उसने लण्ड को खड़ा कर दिया, अब उसे कुछ भी बताने की जरूरत नहीं थी। उसे पलंग से नीचे उतार कर घोड़ी बना लिया और उसके हाथ पलंग पर टिका दिए। अब उसकी गाण्ड मेरे लण्ड के बिल्कुल सामने थी। मैंने उसकी गांड के छेद पर तेल लगाकर अपनी उंगली घुमाई तो वो बोली- इसमें भी करने में मजा आता है भैया?


मैंने कहा- अभी पता चल जायेगा !


और लण्ड का सुपाडा गांड के छेद पर रखकर अपने दोनों हाथों से उसकी चूचियाँ पकड़ ली जो लटक कर हिल रही थी। हाथों से चूचियाँ दबाते हुए लण्ड पर पूरा जोर और लण्ड अन्दर जाने का नाम न ले। उसकी चीख निकल गई पर बन्द कमरे से बाहर नहीं गई।


बोली- भैया ऐसे लग रहा है जैसे मेरी गाण्ड में लण्ड नहीं लोहे का डण्डा घुसा रहे हो।


फिर तेल लगाया और जोरदार धक्का !


लण्ड आधा गाण्ड के अन्दर ! फिर एक धक्का और पूनम पलंग पर गिर गई, लण्ड पूरा अन्दर हो गया।


वो बोली- जल्दी निकालो ! मर जाऊँगी भैया !


अब मैं लण्ड को अन्दर-बाहर करने लगा तो उसे भी अच्छा लगने लगा। बहुत देर तक अन्दर-बाहर होता रहा लण्ड और वीर्य चल पड़ा बाहर को !


मैंने लण्ड गाण्ड से बाहर निकाल लिया और फिर लण्ड को साफ किया और पूनम को सीधा किया, सर के नीचे तकिया लगाया और उसके मुँह के पास आकर मुठ मारनी शुरु की।


बहुत धीरे धीरे वीर्य जैसे ही बाहर निकलने वाला था, मैंने अपना लण्ड पूनम के होंठों पर रख दिया, वीर्य की फुहार आई और पूनम का मुँह भर गया और वो गटक गई। फिर लण्ड अपने होंठों से चूसने लगी। उसे जाते जाते एक बार और जो चुदना था।


वो गाँव चली गई इस वादे के साथ कि फिर आऊँगी राजा तेरे पास !


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Thursday, May 2, 2024

Pyari Bhabhi Meenu-मेरी प्यारी मीनू भाभी

हेल्लो दोस्तो... मेरा नाम रंजन है, मैं दिल्ली से हूँ, एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता हूँ। मैं यहाँ अपने चचरे भाई के साथ कालकाजी में रहता हूँ।


दोस्तो, मैं यहाँ कोई  उत्तेजक कहानी  या मनगढ़ंत कहानी नहीं लिख रहा हूँ। जो यकीन नहीं करना चाहे तो मुझे उससे कोई परेशानी नहीं।


मेरे भैया का नाम नीलेश है, भाभी का नाम मीनू है। हम तीनों यहाँ इकट्ठे बड़े आराम से रहते हैं। कालकाजी में हमने एक बड़ा तीन बेड रूम वाला फ्लैट ले रखा है। भैया का मार्केटिंग का जॉब था और उनका अक्सर बाहर आना-जाना लगा रहता था।


बात पिछले दिसम्बर की है, भैया कोलकाता गए थे। मैं और भाभी अकेले घर में थे। अब दिल्ली की ठंड के बारे में क्या बताऊँ। मैं घर पर ही टीवी देख रहा था। सुबह से भाभी की आवाज़ नहीं आ रही थी। तो मैं उनके बेडरूम में गया, देखा तो भाभी को बहुत तेज़ बुखार थी। मैं उन्हें हॉस्पिटल लेकर गया और दवाई लाया। शाम तक भाभी का बुखार उतर गया था।


रात को खाना खाने के बाद मैं भाभी के पास रुका और बोला- रात को फिर तबीयत खराब हो सकती है, आप बेड पर सो जाओ, मैं यहाँ सोफे पर लेटा हूँ। ज़रूरत पड़े तो आवाज़ लगाना।


भाभी ने हाँ कगा और सोने गई। तक़रीबन 11 बजे भाभी थोड़ी कांपने लगी। मैंने एक कम्बल लाकर दिया। फिर भी भाभी कांप रही थी। मुझसे सहा नहीं गया और मैंने भाभी को कम्बल के ऊपर से जोरो से पकड़ लिया। धीरे धीरे भाभी सो गई। सवेरे उठ कर देखा तो कब हम दोनों कम्बल के अन्दर एक दूसरे को पकड़ कर सोये हुए थे।




मैं उठा तो मेरे होश उड़ गए। मैं भाभी से सॉरी बोला और निकल गया। भाभी कुछ नहीं बोली।


सुबह भाभी ने नाश्ता बनाया और मैं खाकर ऑफिस चला गया। ऑफिस में मेरा काम में मन नहीं लगा, अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि यह कैसे हो गया। मुझे दो बजे के करीब भाभी का कॉल आया।


मैं डर गया और फ़ोन उठाया तो भाभी बोली- रंजन, रात को जो हुआ उसे भूल जाओ। गलती से हो गया और उसे जाने दो।


मैं कुछ बोला नहीं.. थोड़ी देर बाद भाभी का दुबारा फ़ोन आया और वो रोने लगी.. मैंने डर कर पूछा- क्या हुआ..?


तो वो बोली- कोई मुझे नहीं समझता है.. सब अपने काम में लगे हैं !


मैंने पूछा- आखिर क्या हुआ?


तो बोली- तुम्हारे भैया तो हमेशा बाहर रहते हैं... मेरे अरमानों को कौन समझेगा..


मैं कुछ नहीं बोला और कुछ देर बाद बोला- भाभी, आखिर क्या चाहिए?


तो वो बोली- रंजन, मुझे वो ख़ुशी चाहिए जो तुम्हारे भैया से बहुत कम मिलती है..


मैंने फ़ोन काट कर दिया.. थोड़ी देर बाद मेरे मन में भी हलचल होने लगी... दोस्तो, बता दूँ कि मेरे  मीनू भाभी  कमाल की दिखती हैं, रंग गोरा, शरीर भरा-भरा.. जो भी देखे, मुँह में पानी आ जाये... साड़ी पहनती हैं तो क़यामत ढाती हैं...


मैंने दुबारा कॉल किया, बोला- मीनू भाभी, आज तुम्हें वो ख़ुशी दूँगा जो तुम ज़िन्दगी भर भूल नहीं पाओगी..


भाभी ने खुशी में फ़ोन पर ही मुझे चुम्बन दे दिया।


मैं ऑफिस से सात बजे निकला और साथ में आइसक्रीम और कुछ फूल लेकर गया।


मैं घर पहुंचा, मेरे पास घर की डुप्लीकेट चाबी थी तो मैंने धीरे से दरवाज़ा खोला... मेरे आने का भाभी को पता चल गया था, वो मुझे कातिल नज़र से देख रही थी और मुस्कान बिखेर रही थी...


वो मेरे पास आई...


मैंने कहा- भाभी क्या बात है.../


उन्होंने कहा- पहले तो रंजन, तुम मुझे भाभी कहना छोड़ दो और मुझे मीनू बुलाओ...


मैं हामी भरी... मीनू ने प्यारी सी मुस्कान दी और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे गले लगा लिया और मेरे होंठों को चूम लिया।


मैंने भी उसको बाहों में ले लिया, मेरा तो मन किया की मेज पर लेटा कर वहीं चोद डालूँ पर फिर सोचा कि इतनी जल्दी नहीं, आराम से सब करूँगा।


मैंने कुछ नहीं किया।


फिर हमने खाना खाया और साथ में बीयर भी पी.. वो थोड़ा बहकने लगी थी बीयर के नशे में। मैं भाभी को पकड़ कर बेडरूम में ले गया। जैसे ही कमरे में पहुँचे तो मैंने दरवाज़ा बन्द कर दिया और भाभी बेड पर लेटा दिया, अपना शर्ट निकाल कर उसकी ज़ांघों के पास बैठ गया और उसको चूमने लगा।


वो थोड़ी नशे में थी तो भाभी का पूरा बदन मचल रहा था, भाभी का मचलता बदन को देख मेरा लंड और तनने लगा था।


वो बोल रही थी- रंजन, आज मुझे पूरा मज़ा दे दो, जो आज तक तुम्हारे भैया ने मुझे कभी नहीं दिया।


फिर मैंने उसके पूरे बदन को चूमा और उसकी पोशाक बदन से अलग कर दी, उसने लाल रंग की ब्रा-पैंटी पहनी थी, उसके गोरे बदन और बड़ी बड़ी चूचियों की वजह से कमाल दिख रही थी।


मैंने ब्रा के ऊपर से ही उनकी चूची को मसलना शुरू किया और एक तरफ उनके होंठों पर होंठ रख कर रसीला जाम पीने लगा।


वो मेरा पूरा साथ दे रही थी, वो मेरी पीठ सहला रही थी। मैंने उसकी पीठ के नीचे हाथ डाला और ब्रा का हुक खोल दिया तो उनकी चूचियाँ आजाद हो गई और उनकी चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा, एक हाथ से दूसरी चूची दबाने लगा।


वो बोल रही थी- और जोर से चूसो ! और जोर से ! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।


मुझे जोश आ रहा था, मैं जोर जोर से चूसने लगा, मीनू की चूची पूरी लाल हो गई, वो तब तक काफी गर्म हो चुकी थी, मीनू ने मुझे उसके ऊपर से हटाया और खुद मेरे ऊपर आ गई, मेरी पैंट निकाल दी और अंडरवीयर के ऊपर से मेरा लंड पकड़ कर मसलने लगी...


मैंने नीचे लेटे लेटे अपने दोनों हाथ उसकी चूची पर रख दिए और दबाने लगा. वो मेरे होंठो और पूरे बदन को चूमने लगी, फिर मेरे अंडरवियर को धीरे से थोड़ा नीचे किया और मेरे लंड पर हाथ घुमाने लगी। मेरा लंड पूरा कड़क हो चुका था, वो अपना मुँह मेरे लंड के करीब लाई तो उसकी गर्म सांसें मुझे अपने लंड पर महसूस हो रही थी, फिर उसने लंड का सुपारा खोला और अपनी जुबान मेरे लंड पर फ़िराने लगी।


मैं तो जैसे किसी नशे में खोने लगा था, उसने मेरा लंड मुँह में लिया और चूसने लगी। 5-6 मिनट चूसा फिर बाहर निकाल कर मुझे देखा, मैंने सर हिला कर पूछा," क्या हुआ !"


उसने कहा- चूत में आग लग रही है, बहुत प्यासी है..


मैंने उसकी चूत पर अपना मुँह रखा और चाटना शुरू किया तो उसने इशारा करके कहा कि 69 पोजीशन में करते हैं।


हमने ऐसा ही किया, फिर उसकी चूत के दाने को मैंने अपने मुँह में लिया और चूसने लगा, वो तो उछलने लगी थी, मैं अपने दोनों हाथ उसके कूल्हों पर घुमाने लगा। वो मेरा लंड अपने मुँह में लेकर चूस रही थी। ठण्ड होने की वजह से बहुत मज़ा आ रहा था...


वो अपने मुँह से थूक निकाल कर मेरे लंड पर गिराती और थोड़ा रगड़ती और फिर चूसने लगती...


तक़रीबन बीस मिनट ऐसा चलता रहा... फिर वो बेड पर सीधी लेट गई और मैं उसके ऊपर आ गया, उसके होंठों को चूमा, मेरे मुँह पर पर उसकी चूत से निकला हुआ बहुत सारा पानी था, वो चाटने लगी।


फिर मैंने अपना एक पैर उसके दोनों पैरो के बीच में डाला, उसके दोनों पैर फैला कर बीच में आ गया और अपना लंड उसकी चूत पर रखा और धीरे से रगड़ने लगा। उसकी चूत गीली हो गई थी तो मैंने धीरे से लंड अंदर डाल दिया।


जैसे ही मेरा लंड उसकी चूत में गया, थोड़ी आहें भरते हुए उसने अपनी चूचियाँ थोड़ी ऊपर की तो मैंने अपने हाथ उसकी पीठ के नीचे डाल दिए तो उसकी चूचियों में और उभार आ गया।


मैंने ऐसा देखते ही उसकी चूची चूसने लगा और दूसरी तरफ धीरे धीरे लंड को अंदर-बाहर करने लगा।


उसके मुँह से आवाज़ आने लगी- ...हम्मम्म अह्ह्ह्ह.... हम्म्म आआअ...


जो मुझ में और जोश जगाने लगी, मेरी स्पीड बढ़ने लगी और मैं जोर जोर से उसकी चूत में धक्के लगाने लगा।


फिर उसने मुझे थोड़ा धक्का दिया और मुझे बेड पर सीधा लेटा कर मेरे ऊपर बैठ गई...


तो मैंने अपने दोनों हाथ उसके चूतड़ों पर रखे और नीचे से धक्के मारने लगा.. उसको इसमें ज्यादा मज़ा आ रहा था क्योकि लंड उसकी चूत में बहुत अंदर तक चला जाता था। दस मिनट ऐसे ही करता रहा तो वो झड़ गई और मेरे ऊपर ही लेट गई। मैं तो उसकी गाण्ड सहला रहा था क्योंकि उसकी गांड बहुत मस्त थी, बहुत बड़ी और चिकनी भी थी। मैं झड़ा नहीं था तो मैं धीरे धीरे हिल रहा था...


फिर मैंने धीरे से उसके कान में कहा- घोड़ी बन कर चुदोगी?


उसने हिला कर हाँ कहा और घोड़ी बन कर झुकी तो मैंने अपने हाथ का अंगूठा उसकी गांड के छेद पर घुमाया और अपना लंड उसकी चूत में डाला और हिलने लगा। धीरे धीरे मेरा अंगूठा भी उसकी गांड में घुस गया, जैसे जैसे मैं धक्के लगाता गया, वैसे वैसे अंगूठा भी अंदर-बाहर करता गया। वो बहुत सिसकारियाँ ले रही थी और बोल रही थी- और जोर से करो ! फाड़ दो इस चूत को अब !


मैं जोर जोर से करने लगा, मुझे लगा कि अब मैं झड़ने वाला हूँ तो मैंने उससे कहा- मेरा पानी निकलने वाला है, पीना चाहोगी या बाहर कहीं निकालूँ?


वो बोली- चूत के अंदर ही डाल दो कोई तकलीफ नहीं है, उसकी आग भी बुझ जाएगी।


तो मैंने अंदर ही जोर जोर से ज़टके मारे और पूरा लण्ड अंदर तक दबा कर अपना सारा पानी निकाला चूत में..


थोड़ी देर मैं वैसे ही रहा, उसने भी लम्बी साँस ली, फिर मैंने लंड चूत से निकाला तो उसने उसे चूसा थोड़ा..


मैं उसके पास ही लेट गया, उसने अपना सर मेरे कंधे पर रखा और मेरे सीने पर उंगली घुमाने लगी। मेरा एक हाथ उसकी पीठ पर घूम रहा था। लंड से पानी निकल गया तो मुझे नींद आ रही थी तो मैं वैसे ही उसको बाहों में लेकर सो गया।


फिर रात को करीब 3 बजे मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि वो मेरी तरफ अपनी गांड करके सोई है तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसकी गांड पर चूमना शुरू किया, उसकी नींद भी टूट गई। मैंने उसकी गांड के छेद पर जुबान घुमा कर गीला कर दिया। फिर अपने लंड पर थूक लगाया और उसकी गांड में लंड घुसा दिया।


वो पहले थोड़ा चिल्लाई और फिर शांत होकर मज़े लेने लगी। मैंने उसको 20 मिनट तक चोदा और फिर मैं झड़ गया। फिर हम दोनों एक दूसरे से चिपक के सोने लगे तो उसने कहा- काश, तुम्हारे भैया भी इतना अच्छा मुझे चोदते ! तुमने आज मेरी महीनों की प्यास बुझा दी !


फिर वो पूरे 4 रोज़ मुझसे चुदती रही। भैया टूर से आने के बाद भी हमने बहुत बार चुदाई की।


मेरी कहानी पर अपनी राय मुझे ईमेल जरूर करिए।


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Wednesday, May 1, 2024

Suhagrat Ka Asli Maza-सुहागरात का असली मजा

सुहागरात का असली मजा-2

प्रेषक : राज कौशिक


तभी भाई आ गये और बोले- क्या बात चल रही है भाभी-देवर में?


मैं बोला- तुम्हारे बारे में ही चल रही है।


"क्या?"


भाभी बता रही थी कि आपने रात इन्हें कितना सताया।


"अच्छा?"


"हाँ !"


"चलो, तुम मौज लो, मैं चलता हूँ !" और मैं वहाँ से आ गया।


मैं बहुत खुश था और समय का इन्तजार करने लगा कि कब भाभी की चूत फाड़ने का मौका मिलेगा।


दो दिन भाभी के भाई उन्हें लेने आ गये। वो चली गई।


फिर हम उनको लेने गये तो छोटी भाभी बीमार थी इसलिए हम बड़ी भाभी को लेकर आ गये।


3-4 दिन बाद रेनू भाभी का फोन आया, बोली- कैसे हो जानू?


"मैं तो ठीक हूँ पर तुम कैसे बीमार हो गई थी और अब कैसी हो?"


"तुम दूर रहोगे तो बीमार ही रहूँगी ना !"


"तो पास बुला लो !"


"जानू आ जाओ, बहुत मनकर रहा है मिलने का।"


"मिलने का या कुछ करने का?"


"चलो तुम भी ना !"


"जान कब तक तड़पाओगी?"


रेनू कुछ सोच कर बोली- जानू, तुम कल आ घर आ जाओ।


"क्यूँ?"


"कल सारे घर वाले गंगा स्नान के लिए जा रहे हैं और परसों शाम तक आएँगे।"


"तो जान, अभी आ जाता हूँ।"


"ओ रुको ! अभी आ जाता हूँ?" और हँसने लगी।


"तुम कल श्याम को आना। ठीक है? मैं फोन रखती हूँ।"


"ठीक है, लव यू जान !"


"लव यू टू जानू !"


"बाय !"


अब मैं बस उस पल का इन्तजार कर रहा था कि कब रेनू के पास पहूँचूं और उसे पेलूँ।


मैं दूसरे दिन तैयार हुआ और गाड़ी लेकर निकल गया। मैं उसके गाँव से लगभग 15 कि. मी. दूर था तो रेनू का फोन आया।


"जानू कहाँ हो?"


"जान 15-20 मिनट में पहुँच रहा हूँ।"


"जल्दी आ जाओ जानू, मैं इन्तज़ार कर रही हूँ।"


"ठीक है जान, थोड़ा और इन्तज़ार करो और तेल लगा कर रखो, मैं पहुँचता हूँ।"


मैं गाँव पहुँचा तो रेनू और अंकिता (रेनू के चाचा की लड़की, इससे मैं शादी में मिला था) के साथ बाहर ही मेरा इन्तजार कर रही थी। मैंने गाड़ी रोक ली। दोनों ने सिर झुकाकर नमस्ते की। रेनू पीले रंग और अंकिता आसमानी रंग का सूट सलवार पहने थीं। दोनों ही ऐसे लग रही जैसे आसमान से उतरी हों।


अंकिता की लम्बाई और चूचियाँ रेनू से ज्यादा थी और चेहरा लगभग एक जैसा ही।


तभी पीछे से आवाज आई- जीजू, कहाँ खो गये?


"तुम्हारे ख्यालों में !"


"जीजू सपने बाद में देखना, पहले घर तो चलो।"


हम घर पहुँच गये। रेनू ने दरवाजा खोला। हम अन्दर जाकर सोफा पर बैठ गये। रेनू रसोई में चली गई। अंकिता और मैं बात करने लगे। मन कर रहा था कि साली को पकड़ कर मसल डालूँ। फिर सोचा आज रेनू को चोद लेता हूँ फिर इसके बारे में सोचूँगा। साली कब तक बचेगी।


रेनू चाय लेकर आ गई। हमने चाय पी फिर अंकिता चली गई।


रेनू दरवाजा बन्द करके मेरे पास बैठ गई और बोली- खाने में क्या खाओगे।


"तुम्हें !" और पकड़कर चूमने लगा।


"अरे जानू, बहुत ही बेशर्म और बेसब्र हो। मौका मिलते ही चिपक जाते हो।"


"और कितना सब्र करूँ जान? अब नहीं रुका जाता और तुम हर बार रोक देती हो।"


"थोड़ा और सब्र करो जान, हमारे पास पूरी रात है। पहले तुम फ़्रेश हो लो, मैं खाना लगा देती हूँ।"


"ठीक है जानू, जैसी आपकी मर्जी !" कहते हुए बाथरूम में चला गया।


मैं नहा धोकर आया जब तक रेनू ने खाना लगा दिया। रेनू बोली- जानू, मैं अपने हाथ से तुम्हें खाना खिलाऊँगी।


मैं बोला- ठीक है, खिलाओ।


फिर हम दोनों ने एक दूसरे को खाना खिलाया। खाने के बाद रेनू बोली- जानू, तुम उस कमरे में आराम करो। मैं नहा कर आती हूँ।


मैं कमरे में जाकर बैठ गया।


लगभग एक घन्टे बाद आई। उसने वही कपड़े पहने थे जो सुहागरात वाले दिन पहने थे।


प्याजी कलर के लहँगा चोली और हाथ में दूध का गिलास।


मैं उसे देखकर समझ गया कि वो क्या चाहती है और अब तक मुझे क्यूँ रोकती रही।


मैं खड़ा हुआ और दरवाजा बन्द कर दिया। उसके हाथ से गिलास लिया और एक तरफ रख दिया। फिर उसे पैरों और कमर से पकड़कर बाँहों में उठाकर बेड पर लिटा दिया।


मैं उसके पास लेट गया।


आज रेनू कितनी सुन्दर लग रही थी। दिल कर रहा कि बस उसे देखता रहूँ। उसकी प्यारी मासूम सी आँखों में काजल और पतले से होंटों पर गुलाबी रंग की लिपस्टिक बहुत ही अच्छी लग रही थी।


मैंने उसकी नथ और कानों के झुमके उतार दिये। फिर मैं उसके पेट को सहलाने लगा। उसके चेहरे पर नशा सा छा रहा था जो उसकी सुन्दरता को और बढ़ा रहा था। मैंने अपना हाथ उसकी चूचियों पर रखा और धीरे धीरे दबाने लगा। रेनू के होंट काँपने लगे। मैं थोड़ा उसके ऊपर झुका और उसके होंटों पर होंट रख दिये। रेनू ने तिरछी होकर मेरा सिर पकड़ा और होंटों को चूसने लगी। उसने एक पैर मेरे पैर के ऊपर रख लिया जिससे उसका लहँगा घुटने से ऊपर आ गया। मैं हाथ लहँगा के अन्दर डालकर चूतड़ों को भींचने लगा जो एक दम कसे थे।


अब मेरा लण्ड पैंट में परेशान हो रहा था। मैं रेनू से अलग हुआ और पैंट उतार दी। मेरा लण्ड अण्डरवीयर में सीधा खड़ा था। रेनू लण्ड को देखकर मुस्कराने लगी। मैं फिर रेनू के होंटों और गर्दन पर चुम्बन करने लगा। रेनू मुझसे लिपट गई। मैंने कमर पर हाथ रखकर ब्लाऊज की डोरी खींच दी और ब्लाऊज को अलग कर दिया।


गुलाबी ब्रा में गोरी चूचियों को देखकर मुझसे रुका नहीं गया और मैंने ब्रा नीचे खींच दी, उसकी चूचियों को पकड़कर मसलने लगा।


"राज धीरे !"


पर मैं चूचियों को मसलता रहा। वो एक हाथ में मेरा लण्ड लेकर दबाने लगी। मैं उसकी चूचियों को चूसने लगा।


रेनू के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी- आ आह् सी उ राज चूसो मसलो आ ह. .


उसने खुद ही अपना नाड़ा खोलकर लहँगा और पैंटी उतार दी। फिर बैठ कर मेरी कमीज और अन्डरवीयर भी। अब हम दोनों बिल्कुल नंगे थे।


मेरा लण्ड हवा में लहराने लगा।


रेनू ने लण्ड हाथ में पकड़ा और बोली- लण्ड इतना बड़ा भी होता है?


फिर एक हाथ से लण्ड और दूसरे से अपनी चूत सहलाने लगी। मैं खड़ा हो गया और बोला- जान मुँह में लो ना।


रेनू मना करते हुए बोली- मुझे उल्टी हो जायेगी।


"चुम्मा तो लो !"


रेनू ने लण्ड के अगले भाग होंट रख दिये और जीभ फिराने लगी। उसके होंटों के स्पर्श से लण्ड बिल्कुल तन गया। मैंने उसका सिर पकड़ा और लण्ड मुँह में डालने लगा।


रेनू की आँखो में इन्कार था पर मैं नहीं माना और लण्ड मुँह में ठोक दिया। अब मैं उसके मुँह को चोदने लगा। थोड़ी देर बाद रेनू खुद लण्ड को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।


मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी। अब मुझसे नहीं रुका जा रहा था। मैंने रेनू को फिर चूमना और भींचना शुरु कर दिया। रेनू भी पागलों की तरह मुझे चूम रही थी।


मैं उठकर उसके पैरों के बीच बैठ गया। रेनू ने अपनी टागेँ खोल दी। क्या मस्त चूत थी, एक भी बाल नहीं और रगड़ रगड़ कर लाल हो रही थी। मुझसे बिना चूमे नहीं रुका गया। मैंने चूत की फाँकें खोली और छेद पर जीभ रखकर हिलाने लगा।


रेनू मचल उठी और मेरा सिर चूत पर कस लिया। उसके मुँह से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थी। जाने क्या बोल रही थी- चूसो आह सी सी ई.. खा जाओ कुतिया को खा जा बहन के लौड़े मेरी चूत को….. अह्ह्ह … जान यह बहुत परेशान करती है मुझे ! सी ई..


बोली- राज, अब नहीं रुका जा रहा, डाल दो अपना लण्ड और फाड़ दो मेरी चूत को।


मैंने रेनू को तिरछा किया और एक पैर उठा कर कन्धे पर रख लिया। रेनू की टाँगें और लड़कियों से ज्यादा खुलती थी। फिर लण्ड चूत पर फिट किया और टाँग पकड़कर एक झटका मारा। मेरा आधा लण्ड चूत फाड़ता हुआ अन्दर चला गया।


रेनू साँस रोकर चुप लेटी थी वो शायद दर्द सहन करने की कोशिश कर रही थी।


मैंने एक झटका और मारा और पूरा लण्ड चूत में ठोक दिया।


रेनू का सब्र टूट गया और वो चिल्ला पड़ी- आ अ ऊई म् माँ


मैं बोला- ज्यादा दर्द हो रहा है क्या?


"न् नहीं ! तुम चोदो ! आ !"


मैंने उसे सीधा लिटाकर चुम्मा लिया और चूचियों को दबाने लगा। चूचियाँ दबाते हुए धीरे धीरे धक्के मारने लगा। थोड़ी देर बाद रेनू के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी और गाण्ड उठाकर मेरा साथ देने लगी- चोद मुझे, फाड़ दे मेरी चूत को ! फाड़ तेरे भाई की गाण्ड में तो दम नहीं, तेरी में है या नहीं है ! निकाल दे मेरी चूत की आग जो तेरे भाई ने लगाई है !


"यह ले कुतिया, चूत की क्या तेरी आग निकाल देता हूँ !"


मैंने उसे खींचा और बेड के किनारे पर ले आया। खुद नीचे खड़ा हो गया और कन्धे पकड़कर पूरी ताकत से धक्के मारने लगा।


रेनू की हर झटके पर चीख निकल रही थी- आ अ म मरी ऊ ई


पर मेरा पूरा साथ दे रही थी। 15-20 मिनट बाद वो मेरे से लिपट गई। उसकी चूत से पानी निकलने लगा और वो चुप लेट गई। मैं लगातार झटके मार रहा था।


रेनू बोली- राज, अब निकाल लो, पेट में दर्द हो रहा है।


"अभी तो बड़ा उछल रही थी? फाड़ मेरी चूत ! दम है या नहीं? अब क्या हुआ?"


"राज, प्लीज निकाल लो, अब नहीं सहा जा रहा।"


मैंने लण्ड चूत से निकाल लिया और उसे उल्टा लिटा लिया। अब उसके पैर नीचे थे और वो चूचियों के बल लेटी थी। मैं लण्ड उसकी गाण्ड पर फिराने लगा। शायद वो समझ नहीं पाई कि मैं क्या कर रहा हूँ। वो चुप आँखे बन्द करके लेटी थी।


मैंने लण्ड गाण्ड पर रखा और दोनों जांघें पकड़ कर धक्का मारा। लण्ड चूत के पानी से भीगा था सो एक ही झटके में 4 इन्च घुस गया।


रेनू एकदम चिल्ला उठी- आ अ फाड़ दी में मेरी ! मर गई ई ! कुत्ते निकाल बाहर !


रेनू गिड़गिड़ा उठी- राज, प्लीज़ निकाल लो इसे, बाहर वर्ना मैं मर जाऊँगी। निकाल लो राज, मेरी फट गई है प्लीज़ !!! मुझे बहुत दर्द हो रहा है, राज मैं मर जाऊँगी।" मैं मर जाऊँगी।


मैंने लगातार 10-15 झटके मारे। रेनू दर्द से कराह रही थी।


मैं बोला- रेनू, मेरा निकलने वाला है, कहाँ डालूँ।


वो कुछ नहीं बोली, बस चिल्ला रही थी। मैंने उसकी गाण्ड में सारा माल भर दिया।


थोड़ी देर में लण्ड बाहर निकल गया।


हम दोनों एक दूसरे से लिपटे थोड़ी देर ऐसे ही पड़े रहे।


मैं एक बार और रेनू प्यारी चूत के साथ मूसल मस्ती करना चाह रहा था। एक बार फिर से टाँगें उठाकर अपना मूसल रेनू की चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया, रेनू बेड पर पड़ी कराह रही थी।


मैंने उसे खड़ा किया। पर उससे खड़ा नहीं हुआ गया और नीचे बैठ गई। उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे।


मैं रेनू के बगल में बैठ गया और आँसू पोंछने लगा।


रेनू का दर्द कुछ कम हुआ तो बोली- जानू, आज तो मार ही देते।


"जान मार देता तो मेरे लण्ड का क्या होता?"


वो हँसने लगी और बोली- अब तो बन गई मैं तुम्हारी पूरी घरवाली?


"हाँ बन गई !" और मैं उसे चूमने लगा।


"जानू, तुम में और तुम्हारे भाई में कितना फर्क है ! उससे तो चूत ढंग से नहीं फाड़ी गई और तुमने गाण्ड के भी होश उड़ा दिये। वास्तव में आज आया है सुहागरात का असली मजा।"


"आया नहीं, अब आयेगा।"


रेनू हँसने लगी और मुझसे लिपट गई।


मैंने सुबह तक रेनू की चूत का चार बार बाजा बजाया, रात को उसे 3 बार पेला और सुबह नहाते हुए भी।


उसके बाद अंकिता की चूत और गाण्ड फाड़ी।


कैसे?


अगली कहानी में।


फिलहाल यह कहानी कैसी लगी, बताना।


Posted by: hindixstory.com 

Labels: Hindi Font Stories

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